नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी (Nara Medical University) ने घोषणा की है कि जापान में कृत्रिम रेड ब्लड सेल्स (Artificial Red Blood Cells) का क्लीनिकल ट्रायल मार्च 2026 तक शुरू किया जाएगा। यह प्रयोगिक अध्ययन चिकित्सा जगत में एक बड़ा और ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है। अगर सब कुछ योजना के अनुसार चला, तो 2030 तक इसका वास्तविक उपयोग शुरू हो सकता है। यह दुनिया में पहली बार होगा जब कृत्रिम रक्त कोशिकाएं इतनी उन्नत अवस्था तक पहुँचेंगी कि इनका चिकित्सा में नियमित प्रयोग संभव हो सके।
इस तकनीक की जरूरत क्यों पड़ी?
जापान ही नहीं, दुनिया भर में रक्तदान की दर घटती जा रही है। विशेषकर जापान में जनसंख्या में गिरावट और वृद्ध होते समाज के कारण ब्लड डोनर्स की संख्या कम होती जा रही है। इसके परिणामस्वरूप, अस्पतालों और आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं में खून की भारी कमी महसूस की जा रही है।
इसके अलावा, प्राकृतिक आपदाएं जैसे भूकंप, सुनामी, बाढ़ या युद्ध जैसी स्थिति में भी समय पर रक्त उपलब्ध कराना मुश्किल हो जाता है। ऐसी आपात स्थितियों में यह तकनीक जीवन रक्षक बन सकती है।
क्या है कृत्रिम रेड ब्लड सेल्स?
कृत्रिम रेड ब्लड सेल्स ऐसे कृत्रिम रूप से बनाए गए रक्त के घटक हैं, जो शरीर में ऑक्सीजन को एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने का काम करते हैं — ठीक उसी तरह जैसे हमारे शरीर के प्राकृतिक रेड ब्लड सेल्स (RBCs) करते हैं।
यह रक्त कोशिकाएं विशेष रूप से तैयार की गई हैं:
किसी भी ब्लड ग्रुप के व्यक्ति को दी जा सकती हैं l (Universal)
कमरे के तापमान (Room Temperature) पर 2 साल तक रखी जा सकती हैं
संक्रमण मुक्त हैं क्योंकि इन्हें निष्क्रिय या समाप्त हो चुके डोनर ब्लड से बनाया गया है
ऐम्बुलेंस में भी बिना ब्लड ग्रुप जांच के इस्तेमाल किया जा सकता है l
कैसे होगा क्लीनिकल ट्रायल?
यह ट्रायल 16 स्वस्थ वयस्कों पर किया जाएगा l
उन्हें 100 से 400 मिलीलीटर तक कृत्रिम रक्त कोशिकाएं दी जाएंगी
अगर 400 मिलीलीटर तक देने पर कोई दुष्प्रभाव (Side Effects) नहीं दिखते, तो अगली स्टेज में इसका इलाज में उपयोग और सुरक्षा की गहन जांच की जाएगी
कृत्रिम रक्त और प्राकृतिक रक्त में अंतर
कृत्रिम रक्त और प्राकृतिक रक्त के बीच कई महत्वपूर्ण अंतर हैं जो इसे आपातकालीन चिकित्सा में उपयोगी बनाते हैं। प्राकृतिक रक्त, जो रक्तदान के माध्यम से प्राप्त होता है, केवल 28 से 30 दिनों तक ही ठंडे तापमान पर सुरक्षित रखा जा सकता है। इसके विपरीत, कृत्रिम रेड ब्लड सेल्स को कमरे के तापमान पर पूरे दो साल तक सुरक्षित रूप से संग्रहित किया जा सकता है, जिससे इसकी उपलब्धता कहीं अधिक सुविधाजनक हो जाती है।
प्राकृतिक रक्त का उपयोग करने से पहले मरीज का रक्त समूह जांचना आवश्यक होता है, जबकि कृत्रिम रक्त को किसी भी व्यक्ति को बिना रक्त समूह मिलान के दिया जा सकता है। इसके अलावा, प्राकृतिक रक्त में संक्रमण का खतरा बना रहता है, जबकि कृत्रिम रक्त वायरस और अन्य संक्रमण कारकों से मुक्त होता है। निर्माण की दृष्टि से भी दोनों में भिन्नता है — प्राकृतिक रक्त सीधे रक्तदाताओं से प्राप्त किया जाता है, जबकि कृत्रिम रेड ब्लड सेल्स उन डोनेटेड रक्त यूनिट्स से बनाए जाते हैं जो उपयोग की समय-सीमा पार कर चुके होते हैं।
आपातकालीन स्थितियों में जहां तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है, वहां प्राकृतिक रक्त की सीमाएं सामने आती हैं, जबकि कृत्रिम रक्त तुरंत उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे यह चिकित्सा जगत में एक क्रांतिकारी समाधान के रूप में उभरता है।
इस खोज के पीछे कौन हैं?
इस अनुसंधान का नेतृत्व प्रो. हीरोमी सकाई (Hiromi Sakai) कर रहे हैं, जो नारा मेडिकल यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं। उन्होंने कहा, " रेड ब्लड सेल्स का आज तक कोई सुरक्षित विकल्प नहीं है। ऐसे में कृत्रिम रक्त कोशिकाओं की आवश्यकता अत्यंत महत्वपूर्ण है। "
क्या हो सकते हैं इसके भविष्य के उपयोग?
1. दुर्गम क्षेत्रों में चिकित्सा – जैसे ऊँचे पहाड़ी इलाकों, सुदूर गाँवों या युद्ध क्षेत्रl
2. प्राकृतिक आपदाओं में राहत – तुरंत खून की आपूर्ति बिना जांच केl
3. ब्लड बैंक का विकल्प – ब्लड की कमी के समय स्टॉक से तुरंत उपलब्धl
4. मेडिकल टूरिज़्म और सैन्य चिकित्सा में भी इसका बड़ा रोल हो सकता हैl
क्या भारत को इससे कुछ सीखना चाहिए?
भारत जैसे विशाल देश में भी ब्लड की भारी कमी देखी जाती है, खासकर दुर्घटनाओं और प्रसव के मामलों में। अगर इस तरह की तकनीक भारत में भी विकसित या अपनाई जाती है, तो ग्रामीण क्षेत्रों और सरकारी अस्पतालों में जान बचाने की संभावना कई गुना बढ़ सकती है।
कृत्रिम रेड ब्लड सेल्स एक विज्ञान और चिकित्सा की क्रांतिकारी खोज है जो आने वाले वर्षों में लाखों लोगों की जान बचा सकती है।
जापान का यह प्रयास आने वाले समय में एक वैश्विक मॉडल बन सकता है। जैसे-जैसे यह तकनीक सुरक्षित और सुलभ बनती जाएगी, दुनिया भर में इसके व्यापक उपयोग की संभावना प्रबल होती जाएगी।
हमें चाहिए कि हम रक्तदान की परंपरा को बढ़ावा दें, साथ ही ऐसी तकनीकी खोजों के प्रति जागरूक रहें और उनका समर्थन करें।
Tags:
Current Affairs